...

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बाढ़
बादल छाए नभ में देखो, उमड़-घुमड़ कर बरसा पानी,
सूरज का कहीं दर्श नहीं है, भर गई अब तो नदिया रानी,
उड़ गयी नींद बसेरों की, पाकर आहट अंधेरों की,
वर्षों से बसाया घर-संसार, बच ना सकेगा अबकी बार,
तटबंध तोड़ने को आतुर, धाराएं नद की प्रचण्ड,
रौद्र रूप को धारण कर, देने चली हैं कर्मदण्ड ,

महीने भर का अकाल झेल, कमर जिनकी टूटी थी,
अब बाढ़ का प्रकोप उनपर,...