...

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चाहत
टूट गई हूं फिर से जुड़ना चाहती हूं
चुप हो गई फिर से बोलना चाहती हूं
गुम सी गई कंही फिर से खिलखिलाना चाहती हूं।
अपने होते हैं इस नाम से डर लगने लगा है
फिर से किसी को अपना कहना चाहती हूं
उन अच्छी यादों को वापिस जीना चाहती हूं।
कितनी खुश थी ना इन बीते सालों में
वैसे ही मुस्कुराना चाहती हूं।
साथ में बारिश में भीगना चाहती हूं।
वो नखरे उठाना चाहती हूं।
मैं रूठूं तुम मनाओ वो चाहती हूं
वो ख्याल रखवाना चाहती हूं
मेरे रोने से भी मेरे अपनो को तकलीफ़ हो
वो एहसास चाहती हूं।
मैं नहीं बदली सिर्फ
रिश्ते ही तो बदले है
मैं अब भी वही Annu हूं
फिर से खुश रहकर अपनी
ज़िन्दगी जीना चाहती हूं।



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