ग़ज़ल
इश्क़ के इन थके बाज़ुओं के सिवा
और कुछ भी नहीं आँसुओं के सिवा
ये अंधेरे युहीं जगमगाए नहीं
और भी कोई है जुगनुओं के सिवा
क्या मज़ा है भटकने में यूँ दर...
और कुछ भी नहीं आँसुओं के सिवा
ये अंधेरे युहीं जगमगाए नहीं
और भी कोई है जुगनुओं के सिवा
क्या मज़ा है भटकने में यूँ दर...