...

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सुनो अंगराज
जीवन का एक क्षण भी नहीं था शापित
हर रिश्ते का अपना नाम था!
कृष्ण ने नहीं छला था तुमको
ये तुम्हारे अपने चयन का परिणाम था!
कैसे कह दूं मैं कृष्ण को छलिया
कैसे पक्षपाती का नाम दे दूं??
पहले ही कहा था "धर्म हूंं मैं"
फ़िर कैसे उन्हें छल करने का सम्मान दे दूं??
हां बिल्कुल गलत हुआ था तुम संग
ये तुम्हारी माता की मेहरबानी थी!
पर कृष्ण को ही कौन सा मिला सब कुछ
क्या तुम्हें दिखी नहीं उनकी कुर्बानी थी??
पाण्डवों को ही ले लो,,
ना मिला महलों का सुख कभी
कुलवधू सम्मान से हुई अनजानी थी
बारह वर्ष बनवास झेलकर,
अज्ञातवास भंग कराने को भी
क्या शकुनी ने नहीं ठानी थी??
तुम कहते हो तुम संग छल हुआ है ये सब
तो बताओ उफानों में भी कैसे बचे रहे तुम??
ग़र होती साज़िश छल जैसी
तो तूफ़ानों में क्या नहीं मर जाते??
और मिलता ग़र ना शाप तुम्हें तो
क्या तुम अमर नहीं हो जाते??
हुए नहीं वे स्वयं ही अमर
जिन्होंने था धर्म का साथ दिया!!
करते हो तुम कृष्ण की बात
क्या उन्होंने नहीं प्राण त्याग दिया??
खुशनसीब थे तुम, जो हुआ तुम्हारा नाम अमर
दुर्योधन तो नीचता के लिए जाना जाता है
जानना ही चाहते हो तो
सुनो अंगराज!!
मिलता है सम्मान खुद ही से
ऐसे नहीं मांगा जाता है!!
विजयी हुए तुम उसी क्षण ही
जब कृष्ण मिले तुम्हें मित्र बनके
पता था पक्ष नहीं बदलोगे तुम
फ़िर भी,,
प्रशंसायें की हज़ार
समक्ष अर्जुन के भी निर्भीक बनके!!
फ़िर भी तुम ये बात करते हो
यूं सिंहों सा नाद करते हो
ये छल की बात तुम्हें शोभा नहीं देती
तुम तो स्वयं ही अधर्म का साथ देते हो
हां,, दानी थे, महावीर थे तुम
निपुण भी थे और धीर थे तुम
पर क्या भाई के प्रति ममता नहीं जागी?
जब अर्जुन के खून के प्यासे,
इतने अधीर थे तुम!!
तुम बताओ ज़रा मुझे...?
क्या मित्र प्रेम में थे इतने अन्धे
खून तो दूर तुम्हें धर्म भी ना दिखा
जो किया अभिमन्यु के संग तुमने
वृश्चसेन होता तो क्या यही कर जाते
अरे तुम भी तो थे कौन्तेय ही?
पाण्डव को पता होता ये यदि
तो लड़ते नहीं,, वे भले मर जाते!!

© Princess cutie