...

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सुनो अंगराज
जीवन का एक क्षण भी नहीं था शापित
हर रिश्ते का अपना नाम था!
कृष्ण ने नहीं छला था तुमको
ये तुम्हारे अपने चयन का परिणाम था!
कैसे कह दूं मैं कृष्ण को छलिया
कैसे पक्षपाती का नाम दे दूं??
पहले ही कहा था "धर्म हूंं मैं"
फ़िर कैसे उन्हें छल करने का सम्मान दे दूं??
हां बिल्कुल गलत हुआ था तुम संग
ये तुम्हारी माता की मेहरबानी थी!
पर कृष्ण को ही कौन सा मिला सब कुछ
क्या तुम्हें दिखी नहीं उनकी कुर्बानी थी??
पाण्डवों को ही ले लो,,
ना मिला महलों का सुख कभी
कुलवधू सम्मान से हुई अनजानी थी
बारह वर्ष बनवास झेलकर,
अज्ञातवास भंग कराने को भी
क्या शकुनी ने नहीं ठानी थी??
तुम कहते हो तुम संग छल हुआ है ये सब
तो बताओ उफानों में भी कैसे बचे रहे तुम??
ग़र होती साज़िश छल जैसी
तो तूफ़ानों में क्या नहीं...