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गली का जादूगर
अपनी कला का जादू ,चारो ओर फैलाता है "
गली मे आया एक जादूगर,
बड़े ही दिलचस्प, कर्तव दिखाता है,,,,॥

कभी खाली कॉपी के पन्नों को"
भरा हुआ दिखाता है तो कभी,
हाथ मे पड़े सिक्के को गायब कर जाता है,,,,,॥

कभी चादर के अंदर खुद ही छिप जाता है "
कभी उस चादर को हवा मे झुलाता है,
ना जाने कैसे ? पर हक़ीकत मे "
जादूगर बड़ी सफ़ाई से जादू दिखाता है,,,,,,,॥

बच्चों और बड़ों का जमावड़ा जब लग जाता है "
हर एक इंसान ताली बजाता है,
गली मे बैठे उस जादूगर को भी "
कहीं ना कहीं सुकून आ जाता है,,,,,,॥

चलो आज घर मे भूखा ना कोई सोएगा "
इतने सारे है लोग यहाँ हर कोई,
मुझे कुछ ना कुछ दे जाएगा "
खुश होकर वो जादूगर कर्तव पे कर्तव दिखाता है,,,,,॥

अपनी कला का प्रदर्शन दिखाकर जब आखिर मे  "
उसकी जादू की छड़ी का असर खत्म हो जाता है,
एक-एक कर खड़ा वहां हर तमाशबीन इंसान "
जादूगर की आँखों के सामने से ओझल हो जाता है,,,॥

उठाकर उसकी कला पर सवाल "
लोग करते है उस जादूगर का अपमान,
इसमे ना थी कोई बड़ी बात "
बच्चों को बेवकूफ बनाना है तुम्हारा काम,,,,॥

गली में जादूगर की जादू की छड़ी से "
शायद वहाँ बैठे हर बच्चे का,
खिलखिलाया चेहरा किसी को नज़र ना आता है,,,,॥

काफी देर इंतज़ार करके "
जादूगर को भी समझ आ जाता है,
नही मिलेगा यहाँ दाना पानी "
लगता है यह मेरे जैसे गरीबों का इलाका है,,,॥

अपने सामान को बांध वह जादूगर "
बहुत निराश हो जाता है,
जैसे ही वो आगे कदम बढ़ाता है "
पीछे से एक बच्चा उसे आवाज लगाता है,,,,,,॥

उस बच्चे के हाथ मे एक कटोरी आटा देखकर "
उस जादूगर को बड़ा सुकून आता है,
पैसे ना मिले तो क्या हुआ "
आटे से भी रोजी रोटी का इंतज़ाम हो जाता हैं,,,,,,,॥

माना की एक जादूगर बड़ी सफ़ाई से "
बच्चों और बड़ो को चकमा दे जाता है,
लेकिन कड़ी धूप मे घूम-घूम कर "
एक जादूगर गली-गली मे जादू दिखाता है,,,,,,,॥

हर छोटे-मोटे खेल दिखाने वालों को भी "
अपने आत्मसम्मान को बचाना आता है,
तभी तो मांग कर खाने से ज्यादा उन्हे "
मेहनत करके खाना पसंद आता है,,,,,,॥

काश! वहाँ खड़ा हर तमाशा देखता इंसान "
उनके हालातों को दिल से समझ पाता,
तो आज निराश होकर "गली का जादूगर "
अपने घर को खाली हाथ ना जाता,,,,,॥