' अपनी परछाईं से मिलना '
अपनी परछाईं से मिलना...
भी चाहिए सबको कभी-कभी,
और पूछना चाहिए...
खुद से खुद का हाल,
जो बताते नहीं यहाँ हमको सभी!
क्या किया हमनें जीवन में...
और क्या करना है हमको आगे,
कुछ अच्छा भी किया...
इस जीवन में,
या बस बुरा करके ही भागे!
कितनी संतुष्टि मिली जीवन से...
और कितनी तृष्णाएँ जागी,
आत्मा संतुष्ट रही...
या बस मोह-माया के पीछे ही भागी!
सत्कर्म संचित किए...
या दुष्कर्म एकत्र किए,
पापों की गठरी बांधी...
या गुणों से झोली भर लिए!
पूछना परछाईं से अपनी...
कभी ना झूठ ये बोलेगी,
आत्मा तुम्हारी तुमसे...
राज़ सभी हंसकर खोलेगी!
© Shalini Mathur
भी चाहिए सबको कभी-कभी,
और पूछना चाहिए...
खुद से खुद का हाल,
जो बताते नहीं यहाँ हमको सभी!
क्या किया हमनें जीवन में...
और क्या करना है हमको आगे,
कुछ अच्छा भी किया...
इस जीवन में,
या बस बुरा करके ही भागे!
कितनी संतुष्टि मिली जीवन से...
और कितनी तृष्णाएँ जागी,
आत्मा संतुष्ट रही...
या बस मोह-माया के पीछे ही भागी!
सत्कर्म संचित किए...
या दुष्कर्म एकत्र किए,
पापों की गठरी बांधी...
या गुणों से झोली भर लिए!
पूछना परछाईं से अपनी...
कभी ना झूठ ये बोलेगी,
आत्मा तुम्हारी तुमसे...
राज़ सभी हंसकर खोलेगी!
© Shalini Mathur