...

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कहा रहे सलामत अपना तिरंगा
देश पे लुटा रहे जवानी
पहने केसरिया और धानी
कर्ज किया अदा मिट्टी का
आंँखों से न निकला पानी

हर कतरा बदन का कर दिया गंगा
कहा रहे सलामत अपना तिरंगा

नियत की मनमानी थी
पर सांसों ने ठानी थी
सुलग रही जो तन में
मौत तो खैर आनी थी

बंदूक से गोली चला रहा मलंगा
कहा रहे सलामत अपना तिरंगा

छोड़ आया इक गजरा महकता
बूढ़ी आंखों में सावन बरसता
नन्ही कली कदमों से लिपटी
बहन की राखी मुट्ठी में सिमटी

वतन की मिट्टी से तन को रंगा
कहा रहे सलामत अपना तिरंगा
© manish (मंज़र)