...

17 views

तुम+कब+भूलोगे+मुझे
यादों को अपने मन से आजाद कर गए "तुम",
दुख होगा ऐसा करके फिर क्यों खुद को बर्बाद कर गए "तुम",
अगर ऐसा था तो इजाजत नहीं देते मुझे अपने ख्वाब में आने की,
ना नींद मुकम्मल हुई ना ही ख्वाब मुकम्मल कर पाए "तुम"

जो बीत गई वह खुशियां आएगी "कब",
दो रूह ठहर गई थी एक मोड़ पर... वह फिर साथ चल पाएगी "कब",
ना हमें काम है आपसे... ना ही अब आपको हमसे काम आना था,
जानते हैं हम एक ख्वाहिश तो होगी आपकी हमसे मिलने की,
तुम पुछोंगे नहीं हमसे... के हम मिलेंगे "कब"

हमें तो हर पल याद है, वह पल आख़िर तुम उन्हें कैसे "भूलोगे",
हमने कही थी जो तुम्हें अधूरी बात..
तुम दोस्तों से करते थे जिनका ज़िक्र दिन रात ... कैसे "भूलोगे",
वो उन यादों का जिक्र वह बरसात की बात,
उस सन्नाटे से भरी राहों में, हमारे भारी से अल्फास... कैसे "भूलोगे"

कोई बात अधूरी है तो बता दो "मुझे",
अगर गुस्सा हो किसी बात पर तो जता दो "मुझे",
अगर ठान ही लिया है तो हमें भूलने की तरकीब में हमारा एक मशवरा सुन लो,
जब कदम लौटने लगे मेरी ओर... तब कागज पर मेरा एक चित्र बना कर जला दो "मुझे"

कविता की प्रत्येक पंक्ति का अंतिम शब्द जोड़कर कविता का शीर्षक बना है ( तुम+कब+भुलोंगे+मुझे )


#Samvedna
#Radhe
#realityofsamvedna
© Satish Sonone