सुनहरा बचपन - कहां गए वो दिन…
कहाँ गए वो दिन....
जब मां की लोरियों में ही सो जाते थे।
अब तो नींद की गोलियां,
खाकर भी आंखों में नींद नही आती।
अब कहाँ गयी नींद वो बचपन की....
कहाँ गए वो दिन...
जब सर पर मां के हाथ फेरने से सारे दुख दर्द दूर हो जाते थे।
अब तो दिन दिन भर,
मसाज करवाने से भी आराम नही मिलता।
होती थी हर दवा हमारे उलझन की...
कहाँ गए वो दिन...
जब मां के आंचल को पाकर देवेन्द्र सा सुख पाते थे।
अब तो फूलों और मखमल की सेज नही भाती...
जब मां की लोरियों में ही सो जाते थे।
अब तो नींद की गोलियां,
खाकर भी आंखों में नींद नही आती।
अब कहाँ गयी नींद वो बचपन की....
कहाँ गए वो दिन...
जब सर पर मां के हाथ फेरने से सारे दुख दर्द दूर हो जाते थे।
अब तो दिन दिन भर,
मसाज करवाने से भी आराम नही मिलता।
होती थी हर दवा हमारे उलझन की...
कहाँ गए वो दिन...
जब मां के आंचल को पाकर देवेन्द्र सा सुख पाते थे।
अब तो फूलों और मखमल की सेज नही भाती...