...

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खोज :अंतहीन सफर
तेरी बनाई इस दुनिया में ,
मैं कहीं खो गया !
ढूंढ़ते ढूंढ़ते तुझे मैं,, हर जगह ,
थक हर कर कहीं सो गया !

मैं देखता रहा उस अनंत आकाश में ,
पर तू आज तक दिखा नहीं !
ठोकरे खा-खाकर रो पड़ा ,
पर आज तक तेरे रास्ते से मुडा नहीं !

लोगो को गुमराह करूँ ,
मैं वो शायर नहीं हूँ !
दर बदर भटक कर रो भी पडू ,
पर तेरी खोज रोक दूँ !
न प्रभु न ,
बो कायर नहीं हूँ !


तुझे पाने के लिए पता नहीं किस हद तक जा रहा हूँ ,
अंत तक तो ठीक था !
पर अब अनंत की ओर ,
खिंचा जा रहा हूँ

हे ईश्वर !
कल तक मैं मजबूत था ,
और आज मजबूर हो गया !
तू तो नहीं मिला !
पर देख तुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते,
मैं मशहूर हो गया !

आखिरकार थक हार कर मैं सो गया ,
पता नहीं क्यों सुबह एक चिड़िया को
देखते ही मैं खो सा गया !
जब देखा अपने अंदर तो पाया ,
मेरे मालिक तूने वही किया जो तुझे भाया !

तुम तो न मिले ,
पर खुद को ढूंढ लिया !
हे मेरे मालिक!
मुझे मुसाफिर तो बना दिया ,
पर सफर छीन लिया !
© Anurag Thakur