श्रृंगार रस
उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊं ,
वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।
लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली काली ,
फूलों की पंखुड़ियों सी उसके अधरों की लाली ।
वो जो बादल बन गरजे मैं सावन बन इतराउँ ,
लबों को छू कर प्यास बुझे बस यूं ही बरस न पाऊं ।...
वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।
लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली काली ,
फूलों की पंखुड़ियों सी उसके अधरों की लाली ।
वो जो बादल बन गरजे मैं सावन बन इतराउँ ,
लबों को छू कर प्यास बुझे बस यूं ही बरस न पाऊं ।...