...

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सब बिखर गया है💜
सब बिखर गया है💜

तुम जो तट से भीग कर
चली आती थी अपनी हसीन उलझी जुल्फ़े लेकर
तो मैं अपनी नंगी उंगलियों को किसी दांतेदार कंघे
की तरह तुम्हारे बालों में उलझा देता था
और आहिस्ता-आहिस्ता तुम्हारी माँ की भूमिका में
आ जाता था तुम खींच कर निकल जाना चाहती थी
मगर बालों की खीचन की चुभन से गलती का एहसाह
होने पर तुम रो पड़ती थी
और मैं खिलखिला देता था
मेरे-तुम्हारे बाल बिल्कुल एक से थे सीधे मगर कुछ छल्ले
मैं फिर उन्हें सुलझाकर तुम्हें हर उलझन सुलझाने का विश्वास
दिलाता तुम किसी किशोर की तरह मुस्कुरा देती
और आँखे चढ़ा कर मुझे प्रेम का आश्वासन दे दिया करती थी
आज सब बिल्कुल बिखर गया है
गुमशुम बारिश भी जाने कहाँ से गुस्सा लेकर आई है ?
कहिं तुम्हारे तो नही है ये आँशु ?
बारिश सी छलकती बूंदे आँखों के भरने के बाद
छलक रही है
और अचानक से तेज़ एक हवा का झोंका मेरे छाते को
उलटा कर देता ।
मेरी चेतना लौटती है और मैं छतरी बंद कर
प्रयाश्चित करने लगा हूँ💜
© @युवागुश्ताख़