...

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नारियल सरीखे पुरुष....
नारियल सरीखे होते है ये
पुरुष
जरा से चिकने सतह पर
फिर न जाने कितने रूखे
परत दर परत
खोलो जहां तक
मन के
सिर्फ सूखे से रेशे
अगर कभी पहुंच भी जाओ
मन तक
सामना होगा
एक अभेद्य कवच से
अमृत सी रस धार अगर चखनी है
तोड़ना होगा धैर्य से
हर पुरुष बहुत संवेदनशील होता है
उस कवच को न तोड़े जाने के प्रति
© Poeत्रीباز