...

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मत ठहर यहां
खो रहा है खुद को तू क्यो
क्या नही है शेष अब कुछ
अफसोस का दामन जो पकड़े
बैठा है मुख मोड़कर
जीवन का न समापन है
न वक्त ठहरेगा यहां
पल पल खिसकता जा रहा
है ले रहा नित नवीन करवत
फिर शोक का यूं शव उठा
क्यो रुक गया इस राह पर
पहचान भी होगी तेरी
ठोकर भी तुझको सताएगी
बनकर मगर चट्टान सा
बिखरे न जो टूट टुकडे मे
जीवन जो ऐसा है अगर
कभी हौसलो से उड़ायेगा
कभी दुख का सागर भर आएगा
पर होकर तुझको स्थितप्रज्ञ
हर पल यहा चलना होगा
हो उठ खड़ा सब बिसरा भ्रम
फिर थामकर दामन लगन का
सुध भूल कर होकर मगन
चल दे जरा ,मत ठहर यहां।


© Shreya