...

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तुम्हारा ख़याल
इन सर्द रातों में मैं जब भी तनहा बैठ कर तुम्हें सोचती हूँ
तुम्हारा ख़याल ज़हन में इक अजब तूफाँ लेकर आता है
तुम्हारी यादों का लम्बा सफ़र ये दिल पैदल ही तय कर आता है।
एक तारीक वादी में पहुँच जाता है दिल
जहाँ बिखरे पड़े हैं कई बे-रंग ख़्वाब
तुम्हारे झूठे वादे चीखते हैं मिरा नाम लेकर
और मैं डर जाती हूँ
जैसे कोई बच्चा अपने ही साए से डर जाए
अँधेरों में घबराए
और उस वक़्त तेज़ी से चलती ये धड़कनें
मुझे रुकने नहीं देतीं
मुझे थकने नहीं देतीं
फिर ये बेचैनी मुझे इक सफ़र पे ले जाती है
जैसे ठिठुरती हुई रात में कोई जम जाए
चलते-चलते जैसे साँसें थम जाएँ
ज़हन शोर करता है
ये दिल मचलता है
फिर कहाँ किसी से सँभलता है
तबियत ज़ोर करती है
धड़कनें शोर करती हैं
तुम्हारी याद के ये चीखते लम्हे
मुझे रोने नहीं देते
पलकें भिगोने नहीं देते
मुझे सोने नहीं देते