...

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दिल की बात
ख्वाहिशें अधूरी रह गई,
खुशियों में उनके सरीक होते होते,,
मिला ना दो पल चैन कहीं,
थम सी गई मंजिल मेरी,,
उनके नजदीक जाते जाते।।
इस कदर ज़िन्दगी मोड़ लेगी कभी सोचा न था,
मिलेगा ऐसा जख्म कभी देखा न था।
शौक बदले, अपना आशियाना बदला,
पर मिला न सकून कहीं बिन उनके,,
बन बैठा मुसाफिर यूं इश्क फरमाते फरमाते।।
गुजरी बातों को याद करने की मेरी फितरत नहीं,
अश्क गमों से अब हमें कोई नफरत नहीं।
हसरतों में तेरे चोट मैंने हर दफा खाई है,
कसूर क्या मेरा, समझ न खता की आई है।।
बयां करने आया था तुमसे अपने दिल की बात,
अब तूं इसे फरियाद समझ या मेरी आरज़ू की दाद।
खैर छोड़िए......
इजहार ए इश्क रुक जाता है जुबां पे आते आते।।।
written by (संतोष वर्मा)
आजमगढ़ वाले..खुद की ज़ुबानी..