...

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पुरुष
पुरूष करता जब पौरुष है
तब जाकर पलती हैं संतान
पुरूषों की कर्म निष्ठा से
ही बचता है गृह का मान
जब पुरुष हो प्रेम में नारी के नहीं
रहता पुरुष को पुरुष होने का भान
जागृति पाती हैं जब उसकी कोमल
भावनाऐं बह‌ जाता है वह नीर समान
स्त्री पुरुष हैं पूरक दोनों न करो तुलना
एक दूसरे के बन जाओ बस आत्मसम्मान
क्यो एक दूजे से ही युद्ध करते
इस संसार के रण में है कर्म प्रधान
बन जाओ एक दूजे के सहारे
करो एक दूजे को निस दिन सम्मान



© Priyanshibhatt