सोच
सोचती हूं आज कुछ ना लिखूं...
जैसे कलम में स्याही ही न हो
वक्त को गुजर जाने की कोई जल्दी न हो
अतीत का कोई माजी ही न हो। बस
छोड़ गया हो कोई खत, मेरे दरवाजे पर
कश्ती को साहिल से जाने की कोई जल्दी न हो ।
सोचती हूं आज कुछ ना लिखूं....
© Jyoti Dhiman
जैसे कलम में स्याही ही न हो
वक्त को गुजर जाने की कोई जल्दी न हो
अतीत का कोई माजी ही न हो। बस
छोड़ गया हो कोई खत, मेरे दरवाजे पर
कश्ती को साहिल से जाने की कोई जल्दी न हो ।
सोचती हूं आज कुछ ना लिखूं....
© Jyoti Dhiman