...

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चाँद का प्रिय
एक शाम जब आकाश
तारों के विहीन होगा
सिर्फ अकेला चाँद
कभी बादलों में दिखता, कभी छिपता
अंधकारमय आकाश में आगे बढ़ता चला जा रहा होगा,
छितिज की तरफ,
तब उस अकेले चाँद को शायद कोई याद आये,
हो सके तो कहीं वो रूककर अपने मुख से
बादलों की राख को झारना चाहे
और अपने पुरे अस्तित्व में आकर
धरा पर किसी चेहरे को ढूंढना चाहे
बिना किसी भय के, अपने मन की करना चाहे
ताकी बस एक झलक देखकर
अपने सुर्ख़, जलते ह्रदय पर बर्फ सा सुकूँ पा सके
पर शायद जिस दिन वो रुके,
और अपनी आभा में किसी को
ढूढ़ने का प्रयास करे,
वो उसे दिखे ही ना
दिखे तो बस कुछ टूटे, विरान घरोंदे
जिसमे कोई बहुत दिनों तक रहा तो होगा
पर अब वो जा चुका है
तब वह अपने जलते ह्रदय को यह अस्वासन देकर
फिर से अपनी धुरी पर आगे बढ़ चलेगा
कि संभवतः अनंत ब्रह्माण्ड में से
किसी में तो किसी चाँद को
अपनी धरती का प्रिय दिखा होगा
जब वो रुका होगा
संसार की चिंता छोड़,
अपने लिए वक़्त निकालकर

© meteorite