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कभी कभी
कभी लगता है की उदास हूं मैं
जो ना बुझे सदियों से लगी प्यास हूं मैं
किसी अपने से मिलने की आस हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
सूख जाता हूं तो रेत हो जाता हूं मैं
समर्पण में हरा खेत हो जाता हूं मैं
रंगों में बस बेरंग श्वेत हो जाता हूं मैं
ख़ुद के ही जवाब से निराश हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
फ़र्क करता नही फिर भी सब अजीब है
दूर नज़रों से है पर लगता है कि क़रीब है
ज़हर का स्वाद और मीठेपन की खटास हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
सब ने ना जाने क्या सोच पाल रखी है
चोट करने को इक कटार सी निकाल रखी है
सबकी चाहतों के मुताबिक लाश हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
मुझे जानने वाले कई हैं,पर मैं कौन हूं
प्रश्न के उत्तर में मैं क्यूं मौन हूं
प्रश्नों के समुद्र में उत्तरों का ह्रास हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
© All Rights Reserved
जो ना बुझे सदियों से लगी प्यास हूं मैं
किसी अपने से मिलने की आस हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
सूख जाता हूं तो रेत हो जाता हूं मैं
समर्पण में हरा खेत हो जाता हूं मैं
रंगों में बस बेरंग श्वेत हो जाता हूं मैं
ख़ुद के ही जवाब से निराश हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
फ़र्क करता नही फिर भी सब अजीब है
दूर नज़रों से है पर लगता है कि क़रीब है
ज़हर का स्वाद और मीठेपन की खटास हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
सब ने ना जाने क्या सोच पाल रखी है
चोट करने को इक कटार सी निकाल रखी है
सबकी चाहतों के मुताबिक लाश हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
मुझे जानने वाले कई हैं,पर मैं कौन हूं
प्रश्न के उत्तर में मैं क्यूं मौन हूं
प्रश्नों के समुद्र में उत्तरों का ह्रास हूं मैं
कभी लगता है की उदास हूं मैं
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