आईना रुह से टकराता है!
वह क्या खूब बोल रही थी फ़किरा
हर पहलू को बड़े प्यार से थमा के
रुह को मेरे अपने अल्फाजो से मीला के
आईना कोई जीस्मानी जैसे अंतर करा के
मुस्कान कोई इस मुसाफिर से टकरा रही थी
वह पल का लीखा जो कुछ भी था फ़किरा
जोगन कोई जैसे अनामिका अब लीलाधर
आवाज आज भी वही पुरानी
शायद सायर बुला रही थी
बता रही थी कुछ दाग़ लगें हैं...
हर पहलू को बड़े प्यार से थमा के
रुह को मेरे अपने अल्फाजो से मीला के
आईना कोई जीस्मानी जैसे अंतर करा के
मुस्कान कोई इस मुसाफिर से टकरा रही थी
वह पल का लीखा जो कुछ भी था फ़किरा
जोगन कोई जैसे अनामिका अब लीलाधर
आवाज आज भी वही पुरानी
शायद सायर बुला रही थी
बता रही थी कुछ दाग़ लगें हैं...