...

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आईना रुह से टकराता है!
वह क्या खूब बोल रही थी फ़किरा
हर पहलू को बड़े प्यार से थमा के
रुह को मेरे अपने अल्फाजो से मीला के
आईना कोई जीस्मानी जैसे अंतर करा के
मुस्कान कोई इस मुसाफिर से टकरा रही थी
वह पल का लीखा जो कुछ भी था फ़किरा
जोगन कोई जैसे अनामिका अब लीलाधर
आवाज आज भी वही पुरानी
शायद सायर बुला रही थी
बता रही थी कुछ दाग़ लगें हैं
के दामन में मेरे
के f#@kira सब बुला रहे हैं -२
अब होश में आओ फ़किरा के
कब्र कब तो धूल से जमि ढंकी थी
के श्रृंगार लगा कर यहां आना चाहती हैं
राजा नहीं मैं कोई फ़किरा
है उसे भी यह खबर
के दो रूह एक जिस्म हो जाने को जो
बेकरार है जैसे फ़किरा
लगता है ऐसे जैसे
अवतार लेने की उसकी फ़रिश्ते
वक्त हो चला है कोई कयामत
नया धर्म अब फिर कोई असत्यापित करने को
युगे युगे जो चलते हैं आया
होनी जैसे कोई हो जाने को
वो आईना बन कर रूह को मेरे
जिस्म से जैसे टकराते हैं
एक हो जाने को
to be continue........

© F#@KiRa BaBA