...

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उद्देश्य।
चाहत महलों की है तुम दिल में अपने खंडर लिए बैठे हो,
आगे एक रोशन भविष्य है मन में गुजरे मंजर लिए बैठे हो।

चलो बढ़ते रहें हम भी एक उड़ते परिंदे सा बहुत दूर तक,
लोग चोट खाकर उठ गए, तुम मन में पत्थर लिए बैठे हो।

सीखलो अब अपनी खामोशियों को उद्देश्य बनाने का हुनर,
क्यों खामखा इस सफर में बस हार का शोर लिए बैठो हो।

चलो जलाओ अपने भीतर एक नई उम्मीद की मशाल तुम,
उगेंगी मंजिलें मेहनत की, क्यों मन में बंजर लिए बैठो हो।

आईने में खुद को देखो तो आंखें झुकनी नहीं चाहिए 'राही'
प्यास तो दरिया से बूझेगी क्यों भीतर समंदर लिए बैठे हो।

~~~राही~~~