...

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"मीरा"
कहूं मैं कैसे कृष्ण की वाणी,
हुई कैसे मीरा दरस की दिवानी।
चमकी सी बिंदिया, न गहने संग धानी,
मुई प्राण प्यारी, ओट जग वीरानी।

कोई समझे न नित, पीर पराई,
सौ-सौ जतन, क्यों जोगन लगाई।
न बंसी न मोरी, न तोरी है बाती,
जानी न दूजी, सोहबत सगाई।

मिलन सुख होए, अम्रत काया,
एकल साथी, उसने जो पाया।
जुग जुग जीवे, प्रेम गहरावे,
वाणी संग मीरा, धर्म निभावे।

© प्रज्ञा वाणी