"मीरा"
कहूं मैं कैसे कृष्ण की वाणी,
हुई कैसे मीरा दरस की दिवानी।
चमकी सी बिंदिया, न गहने संग धानी,
मुई प्राण प्यारी, ओट जग वीरानी।
कोई समझे न नित, पीर पराई,
सौ-सौ जतन, क्यों जोगन लगाई।
न बंसी न मोरी, न तोरी है बाती,
जानी न दूजी, सोहबत सगाई।
मिलन सुख होए, अम्रत काया,
एकल साथी, उसने जो पाया।
जुग जुग जीवे, प्रेम गहरावे,
वाणी संग मीरा, धर्म निभावे।
© प्रज्ञा वाणी
हुई कैसे मीरा दरस की दिवानी।
चमकी सी बिंदिया, न गहने संग धानी,
मुई प्राण प्यारी, ओट जग वीरानी।
कोई समझे न नित, पीर पराई,
सौ-सौ जतन, क्यों जोगन लगाई।
न बंसी न मोरी, न तोरी है बाती,
जानी न दूजी, सोहबत सगाई।
मिलन सुख होए, अम्रत काया,
एकल साथी, उसने जो पाया।
जुग जुग जीवे, प्रेम गहरावे,
वाणी संग मीरा, धर्म निभावे।
© प्रज्ञा वाणी