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पितृ पक्ष....🙏🌿🌸🌻
जिंदा रहते जो दो घूंट पानी ना दे सके,
वो भोर होते पुरुखों का तर्पण करते हैं,
चढ़ाते हैं फूल अक्षत,आशीर्वाद मांगते,
और अपने स्वार्थ को समर्पण कहते हैं।

जो तरसाते रहे मां बाप को दो टूक रोटी को,
वो स्वादिष्ट पकवान बना पण्डित खिलाते हैं,
जो पितरों का आदर,सम्मान किए नहीं कभी,
वो बैठ कुशा के आसन पे पितृ पक्ष मनाते हैं।

कोई थाम ले आकर कंपकपाते हाथ उनके,
बन जाए कोई उनके बुढ़ापे की लाठी,
कोने में पड़े पड़े निहारते रहते हैं देहरी
यही देखते-देखते आँखें हो जाती है धुंधली।

इसी आस में उनके प्राण निकल गए
कि काश दो पल कोई पास आकर बैठे,
कहे अपने मन की कभी,मेरा हाल पूछे,
ढलती शाम संग रात हो जाती है जैसे
झुर्रियां पड़ गईं,उम्र ढल गई वैसे।

ना बीन सके राहों के कांटें कभी उनके,
ना बन सकें उनके पैरों के जूते कभी।
ना छिड़क सके मरुस्थल मन पे दो बूंदें प्रेम की,
शरीर का मरहम ले आए,मन के घाव ना देखे कभी।

उनकी सुधा मिटाने को पंडित खिलाते हैं,
दान दक्षिणा देकर सम्मानित करते हैं,
काश तुमने उनकी प्रेम भूख मिटा दी होती,
आज़ उन्हें अपनी ऊंगली पकड़ा दी होती।

अपशब्द बोलते हो, गालियां देते हो जिन्हें,
उन्हें करने के बाद श्राद्ध क्यों मनाते हो,
तुम एक आज्ञाकारी संतान तो बन ना पाए,
फिर ये मातृ पितृ सेवा का ढोंग क्यों रचाते हो।

तुम्हारे वक्त के सिवा उन्हें कुछ चाहिए ही नहीं,
चुपचाप सुन लीजिए उन्हें,भले कुछ कहिए भी नहीं,
इतने में ही वो “सूखे ठूंठ” हरे हो जायेंगे...
तुम्हारी हामीं उनकी ताकत है,भले समझिए भी नहीं।

उनकी सांसें चलते वक्त बिता लो साथ में,
वो ऊंगली,वो कलाई,वो कंधे सहला दिया करो,
बाद चले जाने के पछतावा ही बचेगा बस...
बात से ही सही प्रेम का मरहम लगा दिया करो।

#पितृपक्ष
#आकांक्षा_मगन_सरस्वती
#आकांक्षा_की_लेखनी

© ~ आकांक्षा मगन “सरस्वती”