लिख लेती हूं..
वो आइना, हर बार मुझे कई चेहरे दिखता था
पर गलती उसकी नहीं थी,
मैंने ही तो हर बार,खुद को दूसरों की नज़रों
में देखा, हर बार हर मोड पर मैंने खुद को
बदला था..
अंधेरे से डर भले ही लगता था,पर सुकून से
मेरी मुलाक़ात भी तो वही होती थी।
बेशक,दोष उजालों का नहीं था,
बस उजालों में रहने की हिम्मत नहीं थी।
लफ़्ज़ों से ज्यादा खामोशियां बयां करती थी
मुझे और वो चुप्पी हर बार एक ही सवाल
करती थी मुझसे की जमाने से लड़कर,मै
क्यों नहीं बोल पाती थी खुद के लिए...?
लोग तो होते थे साथ मेरे ,पर मै लोगो के साथ
नहीं होती थी।
हमेशा भीड़ में रहकर भी अकेली हुआ करती थी।
खैर वक्त बदला, हालात बदले और मै भी शायद थोड़ी सी,
अब थोड़े देर उजाले मै बैठती हूं,रोशनी में रंगों
को पहचानने की कोशिश करती हूं।
अपनी परछाई से दो बाते कर लेती हूं,
बोल तो अभी भी नहीं पाती पर अब
'लिख लेती हूं'...
(mine story)
#mywords
© Dipanshi
पर गलती उसकी नहीं थी,
मैंने ही तो हर बार,खुद को दूसरों की नज़रों
में देखा, हर बार हर मोड पर मैंने खुद को
बदला था..
अंधेरे से डर भले ही लगता था,पर सुकून से
मेरी मुलाक़ात भी तो वही होती थी।
बेशक,दोष उजालों का नहीं था,
बस उजालों में रहने की हिम्मत नहीं थी।
लफ़्ज़ों से ज्यादा खामोशियां बयां करती थी
मुझे और वो चुप्पी हर बार एक ही सवाल
करती थी मुझसे की जमाने से लड़कर,मै
क्यों नहीं बोल पाती थी खुद के लिए...?
लोग तो होते थे साथ मेरे ,पर मै लोगो के साथ
नहीं होती थी।
हमेशा भीड़ में रहकर भी अकेली हुआ करती थी।
खैर वक्त बदला, हालात बदले और मै भी शायद थोड़ी सी,
अब थोड़े देर उजाले मै बैठती हूं,रोशनी में रंगों
को पहचानने की कोशिश करती हूं।
अपनी परछाई से दो बाते कर लेती हूं,
बोल तो अभी भी नहीं पाती पर अब
'लिख लेती हूं'...
(mine story)
#mywords
© Dipanshi