...

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बीहड़ ईश्वर
वो
बदरंग, बेढंग, बेहया
लोग
बने बनाये रास्तों को
छोड़कर
जाने क्यों
दौड़ते -भागते रहते है
सपाट चट्टानों, अंधेरी गुफाओं में,
बीहड़ जंगलों से आये
वो बेतरतीब लोग
जिनके कान नहीं होते
मुंह अटपटा
आँखें विचित्र
बौखलाये से घूमते-कूदते
दुनियावी नक्शों से अनजान
अपनी कुदाल, फावड़ा लिए
ऊबड़-खाबड़ ढालानों में
बनाते रहते है अजीबोगरीब रास्ते
उस मंजिल के
दुनिया जिसे
किसी दिन मंदिर कहकर
उसमें उनकी मूर्ति बिठाने वाली है
दुनिया के ठुकराये
दुनिया को नोक पर रखने वाले
वे बेपरवाह नहीं जानते
हारकर एक दिन ये दुनिया उन्हें
अपना ईश्वर मान लेगी
अपना 'बीहड़, और बेतरतीब ईश्वर'
© ©meenu🌸