...

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*** नज़र ***
*** कविता ***
*** नज़र ***
" मेरे शामों को तेरी सुबह चाहिए ,
ठहर जाऊ कहीं तुझमें वो नज़र चाहिए ,
जिक्र करने बैठे हैं कि क्या बात की जाये ,
चल कहीं अपनी चाहत ❤️ की आगाज़ की जाये ,
बहकते हैं कदम फिर कहीं रुक जाते हैं ,
इस आवारगी में कहीं तेरा साथ तो मिले ,
तेरे एहसासों कुछ और करीब महसूस करेंगे ,
ज़िन्दगी की मैकशी तुझ में ताविर कर रहे ,
ले चल मुझे कहीं अपने साथ ,
इस बेरुखी कहीं तंग आ गये है ,
मेरे शामों को तेरी सुबह चाहिए ,
ठहर जाऊं कहीं तुझमें वो नज़र चाहिए ."

--- रबिन्द्र राम
© Rabindra Ram