...

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मैं मिलूंगी तुम्हें...
यदि समय दुसाध्य हुआ,
और बिछड़ना अनिवार्य हुआ,
तो तुम ढूंढ़ना मुझे...

मैं मिलूंगी तुम्हें...
आंगन की बिखरी चांदनी में,
चंचल हवाओं वाली यामिनी में,
मिट्टी की खुशबू में,
बारिश से भीगी सड़कों में...

मैं मिलूंगी तुम्हें...
धूप में, सुनहरे किसी रूप में,
किसी पेड़ की छांव में,
किसी राहत रूपी गांव में,
तुम्हारी परछाईं में,
लोगों की अच्छाई में...

मैं मिलूंगी तुम्हें...
यादों की किताबों में,
तुम्हारे पूर्ण ख़्वाबों में,
तुम्हारी कविताओं...