...

4 views

महफ़िल तेरे नाम की
दिल पर तेरी महफ़िल सजा बैठे थे,
लफ़्ज़ों में सिर्फ़ तेरे नाम शामिल थे!
पर ख़ास पसंद नहीं आई शायद,
वो महफ़िल तेरे नाम की...
के पैगाम-ए-रूह जान की।।

एक नया अंधेरा,
तेरे दिल में बसा था!
लोग अक्सर कह जाते है जिसे,
इश्क़ करने का
वो तेरा दूजा तरिका था।
पर महफ़िल-ए-इश्क़ को
तूने तबाह किया था।
मेरे कतरे भर से तूने,
ज़र्रा ज़र्रा इश्क़ के
पनाह का घूंट पिया था।।

कहाँ तेरा साथ थामे,
ज़िंदगी का सफर देखा था।
तुझे रूह-ए-दिल से हाथ थामे,
बंदगी का ठिकाना संभाला था।।

शायद तुझे इश्क़ की महफ़िल,
कुछ भाया ना था
तभी मेरे बदनामी में तेरे लफ़्ज़,
मुझे सैलाब दे बैठे था....
और तेरा इश्क़ कभी
मुझ पर रहमदिल बना न था।।

लिबास-ए-नूर के नीचे,
काश तुझे तेरे दिए ज़ख्म दिख जाते।
अरे, जो बहाने ढूंढता था जाने के,
वो आख़री बार
मेरे चले जाने से रुका क्यों था?

देख आज सज बैठी हूँ,
बिना तेरे नाम के!
बिना कोई पैगाम के।
आज क्या दाग़ लगाया तू?
जब दग़ा ही ले जाएगा तू।।

तू बदनाम ना सही,
तेरे नाम की महफ़िल में।
पर कलम की स्याही रूकती नहीं,
कभी बदनाम इश्क़ के किस्सों में।।

देख हाल मेरा
आज तू भी हस्ता होगा...
पर कभी तो तू भी बरसता होगा।
हर रात काली होती है तेरी पर....
आज भी तेरे नाम की महफ़िल में,
कलम की दिवानी का नाम
खूब बिकता होगा।।


© KALAMKIDIWANI