ज़िंदगी
बिछड़ कर भी वो बिछड़ता कहाँ है
जाने कैसा लम्हा है, गुजरता कहाँ है!
रोका था पलकों के साहिल पे हमने
सैलाब मगर ये संभलता कहाँ है!
किया है जो खुद को हवाले...
जाने कैसा लम्हा है, गुजरता कहाँ है!
रोका था पलकों के साहिल पे हमने
सैलाब मगर ये संभलता कहाँ है!
किया है जो खुद को हवाले...