...

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मैं और मेरी तन्हाई
तन्हाई
तन्हा मुसाफ़िर, तन्हा सफ़र था, न साथी कोई, न कोई हमसफ़र था I संकरी थी गलियाँ,हर तरफ अँधेरा,अनजान राहें, गुम हो जाने का डर था I कहीँ ऊँची, कहीँ नीची थी राहें, कहीँ थे पर्वत, कहीँ गहरी थी खाइयाँ!
ख़ामोश मंज़िल थी, ख़ामोश राहें, दिख न रही थीं कहीं...