...

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शिक्षित बेरोजगारी
ज़िम्मेदारी उठाने की उम्र में वो अपनों पर हीं भार है।
कहने को ऊंची डिग्रियां है उनके पास फिर भी बेरोजगार है।
राह देखते-देखते बहालियों की उम्र निकल रही इनकी
पूँजी की अभाव में ये बेबस है लाचार है।

मिल नहीं पा रहा अवसर इन्हें किसी क्षेत्र में जाने को
यूं तो इनके पास कुशलता अपरम्पार है।
देखते है जब घर खर्च चलाते पिताजी को पेंशन से
सच पूछो इन्हें खुद पर होता कितना धिक्कार है।

समाज के ताने अक्सर सुनने को मिलते इन्हें
इन तानों से ऊबकर घर के लोग भी उन्हें लगा देते फटकार...