...

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एहसास की तलब
दोस्त, ज़िन्दगी के इन चंद लम्हों से कुछ सुंदर तोहफ़ों की ख्वाहिश की थी,
चाह थी फ़कीरा मग्न होकर इन महकते सुनहरे जज़्बात से गुफ्तगू कर लूँ मैं,

जानता हूँ उस रब के फरिश्ते को सजदा किया तो अरदास सुन लेगा ये मेरी,
ऐसे ही एक सुंदर एहसास से रूबरू होकर इसमें डूब जाने को तैयार ये लहरें हैं,

मसाइल तो बहुत हैं इस ज़िन्दगी में, लेकिन ये नूर सुंदर श्रृंगार सब भुला दे हैं,
अरविंद इन खूबसूरत दिलकश नाज़-ओ-अदा एहसास की तलब लगा दे मुझे I