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जनहित की जड़ की बात - 13
जनहित की जड़ की बात - 13

रावण ने हर ली थी सीता,
पूर्ण सुरक्षित रही वाटिका !
अब रोज ही लुटे बालिका,
दुर्दैवी हो चला सलीका !!

हैवानियत की हद ना रही,
शैतानियत ही उभर रही !
चुन लेते हम छंटे हुओ को,
इतनी सी भी समझ नहीं !!

नेता के भरोसे कब तक ?
लुटती ही रहेगी अस्मत !
खम्बों की मिलीभगत है,
इसीलिये फूटी है किस्मत ?

पीड़ितों की जान जा रही,
राजनीति में जान आ रही !
सबके शासन में दुशासन,
जनता ये भी समझ न पा रही !!

चांडाल चौकड़ी जुल्म ढ़ाये,
नित नया...