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मौन
संघर्षरत ये मौन आवरण
अशांत आवेग संभाले
अवहेलना और उपेक्षाओं का
मर्म बस मौन ही जाने
चरित्र को करे कभी कलुषित
तो करे कभी पावन परिभाषित
सत्य से दूर या सान्निकट सत्य के
वास्तिविकता बस मौन जाने
दूभर इसे संजो के रखना
आक्षेपों को पिरो के रखना
प्रश्नचिन्ह या उत्तर का परिचायक
स्थिरता बस मौन पहचाने
जग सुने रिक्त अहम का कोलाहल
आकर्षण मात्र छलावा आडंबर
स्वीकृत करे हर परिस्थिति
अंतर्द्वंद फिर भी मौन जाने
विनिता पुंढीर
© vineetapundhir
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