...

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“हमनवां”
उसकी बातों ने वो कर दिखाया
जो कोई न कर सका
उसकी कमी ने जगह छोड़ी ऐसी
जो कोई न भर सका
हमें मिले ही कितने दिन हुए
लेकिन ऐसा लगता है
न मैं थकी न मेरा सफर थका
उसे ही सोचती हूं अब रात दिन
के जैसे कटता नहीं उसके बगैर
एक भी पल एक छिन मेरा
वो आता है मुझे नज़र इस तरह
परछाई बनकर हो जैसे
कोई हो साथ चला
दिल कहता है रोक लूं उसे
अपने ख़ाली मकां में
रख लूं उसे अपनी
हर मीठी जबां में
न वो मुझे भूला पाए
न मेरा उससे कभी दिल भरा
मेरा प्यार बनकर लौटा है
आज मेरा हमनवां

© ढलती_साँझ