एक शख्स
मुझमें खोया एक शख्स ढूंढता है ख़ुद को।
अब तो कोई मुझे उसका पता दे दें।
ना जाने कबसे बेघर हुआ है वो नादान।
कोई उसे घर में ही जीने की सज़ा दे दें।।
हम तो काफिलों में ही थे लापता कब से?
काफिलों को कोई ठहरने की मेरी इल्तेज़ा दे दें।
जानता कौन है उसको जो है मौजूद ख़ुद के अंदर?
उसको ढूंढ कर अपनी बाहों में ले और ज़िन्दगी का मज़ा दे दें।
ना - काफ़ी है दस्तूर को ही जिए जाना ज़िंदादिल।
शरफरोशी है जो मुझमें कोई उसे सिलसिला दे दें।
भूल जाता हूं अक्सर अपनी ही ख़ामोशी को।
याद रखने का कोई कभी तो ताल्लुक़ - ए - मद्दुआ दे दें।
अजीब बात है कि ख़ुद का ही नाम भूल बैठा है तू?
तुझे भी तो कोई याद रखने का ख़ुद को कोई कभी दवा दे दें।
अक्सर परेशान ही पाया है हमनें इंसानों को इस बस्ती में।
मरे हुएं इन लाशों को कोई जीने की फ़लसफ़ा दे दें।।
हमनें देखा तो क्या देखा की तन्हा है हर इक शख्स यहां।
हो सकें तो कभी कोई इनको हालत - ए - बेदीला दे दें।
ख़ुद को ही कहते है ख़ुदा जाने किस गुमान में इंसान?
कभी तो वो ख़ुदा इंसानों को ख़ुद का आयना दे दें।।
अब चलूं बहुत कर लिया है आराम हमनें इस सफ़र में।
मंजिलों को मेरे पहुंचने की कोई ज़रा पता दे दें।।
© ज़िंदादिल संदीप
अब तो कोई मुझे उसका पता दे दें।
ना जाने कबसे बेघर हुआ है वो नादान।
कोई उसे घर में ही जीने की सज़ा दे दें।।
हम तो काफिलों में ही थे लापता कब से?
काफिलों को कोई ठहरने की मेरी इल्तेज़ा दे दें।
जानता कौन है उसको जो है मौजूद ख़ुद के अंदर?
उसको ढूंढ कर अपनी बाहों में ले और ज़िन्दगी का मज़ा दे दें।
ना - काफ़ी है दस्तूर को ही जिए जाना ज़िंदादिल।
शरफरोशी है जो मुझमें कोई उसे सिलसिला दे दें।
भूल जाता हूं अक्सर अपनी ही ख़ामोशी को।
याद रखने का कोई कभी तो ताल्लुक़ - ए - मद्दुआ दे दें।
अजीब बात है कि ख़ुद का ही नाम भूल बैठा है तू?
तुझे भी तो कोई याद रखने का ख़ुद को कोई कभी दवा दे दें।
अक्सर परेशान ही पाया है हमनें इंसानों को इस बस्ती में।
मरे हुएं इन लाशों को कोई जीने की फ़लसफ़ा दे दें।।
हमनें देखा तो क्या देखा की तन्हा है हर इक शख्स यहां।
हो सकें तो कभी कोई इनको हालत - ए - बेदीला दे दें।
ख़ुद को ही कहते है ख़ुदा जाने किस गुमान में इंसान?
कभी तो वो ख़ुदा इंसानों को ख़ुद का आयना दे दें।।
अब चलूं बहुत कर लिया है आराम हमनें इस सफ़र में।
मंजिलों को मेरे पहुंचने की कोई ज़रा पता दे दें।।
© ज़िंदादिल संदीप