...

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पिता
पनाह मिलती हर गर्दिश के मौसम में
वो ख़ुद ख़ामोशी से दर्द सहा करता है

पोंछ कर आँसू अपने बच्चों का वो
ख़ुद जज्बातों में बहा करता है

लहजा वो दिखलाता ऐसा हरदम
परे होकर दुआओं से बच्चों के लिए दुआ करता है

जो लड़ जाएं पूरी दुनिया से अकेले बच्चों के लिए
वो सिर्फ़ एक बाप ओ खुदा हुआ करता है

लिख पाना उसके त्याग को आसां नही
हर उतरता हुआ लफ्ज़ ये बयां करता है

लोग पत्थर की मूरत में ख़ुदा को ढूंढने निकलते हैं
पर मेरा दिल तो पिता का ध्यान करता है

जितना लिखूं उतना ही कम होगा ए मुर्शीद मेरे
वो तो हर दिल का परवरदिगार हुआ करता है

सभी हमसफ़र खुदगर्ज़ी से भरे होते हैं
बस पिता ही सच्चा हमदम हुआ करता है



© utsav kuldeep