...

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कविता 1: मेरे जाने के बाद
मेरे जाने के बाद
मेरे आने से पहले
तुम दरीचा-ए-दहर पर
मेरा इंतज़ार नहीं करना...

संँवारना ख़ुद को नई किसी
बसंत की सुंदर बेल-सा
किसी पतझड़ की सूखी शाख़ सा
ख़ुद को बेज़ार नहीं करना...

ये धड़कता पत्थर
तुम्हारी ही तो अमानत है
ज़माने के आगे देखो
इसका इस्तेहार नहीं करना...

मेरी तन्हाइयों को तुम सीने से लगा
अपनी मुश्किलें न बढ़ाना
मेरी तस्वीरों का तुम अब
फिर से दीदार नहीं करना...

ये जो तुम्हारी मीठी-सी
मुस्कान है चहरे पर
इससे निभाने में वफाएँ
तुम इतवार नहीं करना...

बैठ किसी साहिल पर, सागर में
अपने अंगारे डूबो देना
मगर देखो काम ये भी
तुम बार बार नहीं करना...

दे देना हमें हमारी
बेवफ़ाईयों की कुछ यूंँ सज़ा
के बाद हमारे तुम हमसे
पहले सा प्यार नहीं करना...

मेरे जाने के बाद
मेरे आने से पहले
तुम दरीचा-ए-दहर पर
मेरा इंतज़ार नहीं करना...

पूजा गौड़
© Pooja Gaur