...

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जिजीविषा
जब भी मैं तुम्हारे ठहरे हुए
अवचेतन मन में यादों के कंकड़ फेंकता हूँ
तुम जलतरंगों की तरह मेरे समीप आने का
अथक प्रयास तो करती हो लेकिन मर्यादा
की समीर हमेशा तुम्हें विफल कर देती है
और देखते ही देखते मेरे दृगनयनों से
ओझल हो...