...

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खुशनसीब
....... खुशनसीब ......

आज समझता हूं खुशनसीब खुद को
काटों की दवा भेज दी खुदाने मुझको

जख्मों की दवा लाया है दोस्त मेरा
चमन की हवा लाया है दोस्त मेरा

खुशनसीब फूल हूं मैं खिला हुआ
कौन कहता है की मैं हूं बिखरा हुआ

सवालों के घेरे से निकला हूं आज बाहर
दिखाया है रास्ता खुदा ने मुझको
काटो की दवा खुदा ने भेज दी मुझको

आज दिल को सुकून मिला
सवालों को अपना घर मिला

उजालों से जीवन को मिली रोशनी
भटके मुसाफिर को जैसे मंजिल मिली

दूर हुए दिल के सारे गिले शिकवे
मिला दिया हमसफर से खुदा ने मुझको

अब नही कोई मलाल खुदको
समझता नही हूं बदनसीब खुद को
कांटों की दवा खुदा ने भेज दी मुझको
….............................
नौशाबा जिलानी सुरिया
© naush..

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