...

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अजनबी
कुछ हम मुस्करा दे
कुछ तुम मुस्करा दो
झरने लगते हैं फूल
साँसों में मिश्री घुलने दो

जलती धूप में अमलतास
की तरह सुर्ख और लाल
मीठी सी एक छाँव सी
आँखों में समुंदर बसने दो

अजनबी से ही सब यहाँ
दो कदम साथ चलने दो
कौन जानता किसे यहाँ
मुड़ के एक बार देखने दो

खाक हो जाएंगे हम
बस एक बार पिघलने दो
पत्थर की तरह गुमसुम
रोशनी सा जलने तो दो
© साँसे