...

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सीने से लग कर दिल गुलज़ार करता है
सीने से लग कर दिल गुलज़ार करता है
दरिया भी मिट्टी पे चूम कर वार करता है

करता है अठखेली पहले लहरें भेज कर
नर्म दिल मिट्टी में हौले से दरार करता है

तकता है साहिल खुद को यूं कटते हुए
इत्तिफाक सोच खुद को बेज़ार करता है

मंसूबे दरिया के कभी मालूम न होंगे उसे
इस कदर वो इस दरिया से प्यार करता है

शीशे सा मुकद्दर है टकरा के बिखर जाना
पिघला न दरिया, गुनाह बार बार करता है

भीगती है उम्र भी जिस्म में कुछ इस तरह
सांसों का साथ जो सजाकर तैयार करता है
© manish (मंज़र)