...

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अन्तर्मन

यूं भटकते दर भटकते मूंद ली आँखें

कि जैसे भूल अपनी न दिखाई देती

खिल उठे हैं चेहरे कुढ़ते हुऐ वो

आवाज़ जिनको मेरी ना सुनाई देती

गन्ध आती...