...

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अर्थ या व्यर्थ ?
मज़ाक ना समझो प्यार शब्द को
हैं यह साधना के समान ,
आजकल ये हो गया खेल
मिल रहा बुरा परिणाम |

एक दिल ,दो जान बनाये
करना पड़ता सम्मान,
अगर,किसी एक ने दिया दगा तो
टूट सकता अभिमान |

जब जब सच्चे भले किसने
प्रकाश किया इज़हार
तब तब खानी पर गयी उनको
करवे उत्तर की मार |

जिसमें लाखों बुरी आदतें
किया उसीसे स्नेह ,
फिर क्यों बाँधते बंधन
जिसमे, हो अच्छे गुण अनेक ?
प्रमाण हो गयी इसी कार्य से
नहीं था कोई प्यार,
स्वार्थ के चलते कर सकती
मुर्दों पर भी अधिकार |










© अविनाश कुमार साह
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