...

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उम्र
वो यूंही बैठे
मुस्कुरा रही थी
की किसी ने उसकी हसी छीन ली
ये कह कर की
अब उम्र ही नहीं रही मुस्कुराने की ।।

वो यूंही बैठे
गुनगुना रही थी
की किसी ने उसको खामोश कर दी
ये कह कर की
अब उम्र हो गई जिम्मेदारियां संभालने की ।।

वो यूंही बैठे
ख्वाब सजा रही थी
की किसी ने उसकी ख्वाब तोड़ दी
ये कह कर की
अब उम्र ही नहीं रही खुद ख्वाब देखने की ।।

वो यूंही बैठे
ख्वाहिशों को गले लगा रही थी
की किसी ने उसकी ख्वाहिशों को मार दी
ये कह कर की
अब उम्र हो गई अपने ख्वाहिशों को भूलने की ।।
© 🌼Amrita🌼