...

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दो गज ज़मीन
हो रहे क्यों ऐसे आतुर,
ओ ! मानव जन -
मन विचलित हो बोल रहा !
दो गज जमीन की ख़ातिर,
रहे क्यों मासूमो का खून बहा !
ये मिट्टी न तेरी है, न ये मिट्टी मेरी है,
बोली का बस फेर है वरना,
प्रकृति सकल सहेली है !
ये किससे कब है खून माँगे,
प्रेम सौहार्द के केवल बंधन में बाधे !
दो गज जमीन की ख़ातिर,
रहे क्यों मासूमो का खून बहा !
© Diल की पाti (Deepa Rani)🖋..