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नाकाम जी को जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं और बधाई!
खबर सुनकर मिरे होठों को भी विस्तार है भाया
ये दिन पंद्रह दिसंबर का जनम नाकाम ने पाया

कलम जागी ये नीता की बहुत दिन से जो सोई थी
लगी लिखने तो इक चेहरा भला सा सामने आया

पुकारूं क्या उसे कह कर जो खुद नाकाम कहलाए
बहुत सोचा मगर आखिर गुरु कहना ही मनभाया

वो शायर है बड़ा अद्भुत नई शैली ग़ज़ल की है
मिले बंदर या फिर तोता सभी को साथ ले आया

भले अनजान है सूरत मगर सीरत रुहानी है
फकीरी सोच है उसकी ग़ज़ल उसका है सरमाया

दिवाना है वो ' साहिर' का पसंद उसकी बताती है
कभी ' नाकाम ' को सोचा तो ' साहिर' सामने आया

कभी मासूम सा लगता कभी वह दिलजला - सा है
कभी वो धूप सर्दी की कभी जैसे घनी छाया

नहीं मैं जानती ज्यादा कलम के उस पुजारी को
मिला उसका ये जो परिचय वो...