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प्रेमचंद(धनपतराय श्रीवास्तव)...
आपका जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी के लमही गाँव में हुआ। आपका भारतीय साहित्य में कालजयी योगदान रहा है जो अतुलनीय व अविस्मरणीय है।
आपने न केवल अपने समय की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और धार्मिक परिवेशों का वर्णन किया है अपितु आने वाले हर वक्त को बयां कर दिया है।
आपने अपने साहित्य, उपन्यासों, रचनाओं और नाटकों के माध्यम से समाज में व्याप्त उन दुर्दशाओं की और ध्यान आकृष्ट किया है, जिनसे अक्सर हम अनजान बने रहते हैं।

आपकी सामाजिक मुद्दों को उठाती 'गोदान' बताती है की, जब तक रीतियां, समाज में व्याप्त कुरुतियों पर भारी नहीं होंगी तब तक समाज में किसी भी तरह का बदलाव संभव नहीं है। आपने अपने समय की सामाजिक परिस्थितियों को उजागर किया और आज भी लगभग लगभग कुछ नहीं बदला है
आज भी वही सब घटित हो रहा है जिसका वर्णन आप पहले ही कर चुके है।
दो समुदायों के बीच आज भी वही हीन भावना जारी है, वही हवस जारी है।
शायद इसीलिए आपको कालजयी कहा जाता है। बदलाव के नाम पर महज इस युग में बदलना छोड़ महज बदला ही रह गया है।

भ्रष्टाचार को उजागर करती आपकी 'गबन' बताती है आज हर क्षेत्र में मिलावट सी आ गई है।
यह मिलावट हमारे आचार, विचार और संस्कारों में भी होने लगी है।
जाने किस बात की जल्दी है,
या यों कहूं की इस जल्दी ने ही हमें भ्रष्ट बना दिया है।
कोई इंतजार करना ही नहीं चाहता।
किसी के जानकार निकले तो काम जल्दी हो जाएगा और जिसे कोई नहीं जानता...