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तुम्हारी यादें
दोनों हाथों से ज़ोर से बंद करने के बाद
नल से टपकते बून्द बून्द
की तरह है तुम्हारी यादें
जो मेरे
हकीकत के फर्श को
अक्सर गीला छोड़ जाती है
मेरे लड़खड़ाने के लिए
इसलिए
अब मैं उन टपकती बूंदों को
कैद कर लेता हूँ
मिट्टी के घड़े में
और
धकेल देता हूँ
बिस्तर के नीचे
ताकि
सुर्ख रातों को
चिलचिलाती दोपहरी को
बेरुखी सुबहो को
बेरंग शामों को
उनके छीटो से
तुम्हारा रंग भर सकूं
उनमे
और उनके प्रतिबिम्ब में
ढूंढ सकू
अपना अक्स
जो
तुम्हारे पास रह गया है!
© Mystic Monk
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